अजंता और एलोरा की गुफाएँ - भारतीय वास्तुकला का चमत्कार [Ajanta and Ellora Caves – A marvel of Indian Architecture]

अजंता और एलोरा की गुफाएँ - भारतीय वास्तुकला का चमत्कार




    भारत का इतिहास यहां की संस्कृति की एक अनोखी झांकी पेश करता है भारत के धर्म सभ्यता और संस्कृति की झलक इसमें बया होती है आज कला और वास्तुकला के क्षेत्र में 
बहुत प्रगति हो गई है लेकिन अगर आप पीछे मुड़कर अजंता और एलोरा की गुफाओं को देखेंगे तो हैरान हुए बिना नहीं रह सकेंगे क्योंकि अपने आप में बहुत ही अद्भुत प्राचीन भारतीय कला और वास्तु कला का उत्कृष्ट नमूना है यह गुफाएं भारत के दोसबसे प्रसिद्ध सबसे अनोखे पुरातात्विक स्थल हैं अजंता और एलोरा की गुफाएंजिन्हें देखकर आप भारत की कला धर्म और इतिहास को बहुत करीब से समझ सकते हैं लंबेसमय तक अतीत में गुमनामी का मंजर देखकर निकली यह गुफाएं अपने आप में रहस्य से भरीहैं यह गुफाएं कहां स्थित है किस तरह धर्म के रूप दर्शाती हैं कितने समय पुरानी हैऔर इनसे जुड़ी कथाएं और कहानियां क्या कह हैं आपको यह जरूर जानना चाहिए ताकि आप समझसके कि भारत देश की कला कितनी समृद्ध है इसकी प्राचीन कृतियां हमारे लिए धरोहर है जिन्हें संजोने और सरने की जरूरत है और इन पर गर्व करने की जरूरत भी है इसलिए आज कीजर्नी में हम जानेंगे अजंता और एलोरा की गुफाओं अजंता और एलोरा की गुफाएं यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल है यहां की धार्मिक चित्रकारी और कला का प्रभाव भारत में कला के विकास पर गहरा प्रभाव डालता है यूं तो अजंता और एलोरा की गुफाओं को एक ही मान लिया जाता है लेकिन इनमें अंतर है यह दोनों ही गुफाएं चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिर और मठ हैं लेकिन फिर भी एक दूसरे से अंतर रखते हैं अजंता और एलोरा की गुफाओं मे लगभग 100 किलोमीटर की दूरी है अजंता की गुफाएं केवल एक धर्म पर आधारित हैं तो एलोरा की गुफाओं में कई धर्मों को स्थान दिया गया है चलिए पहले अजंता की गुफाओं के बारे में जानते हैं और फिर एलोरा की गुफाओं के बारे में भारत के महाराष्ट्र राज्य के छत्रपति संभाजीनगर जिले यानी _


औरंगाबाद से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित है अजंता गुफाएं जो घने जंगलों से घिरी

हुई बौद्ध गुफा स्मारकों का समूह है समुद्र तल से ये 76 मीटर की ऊंचाई स्थित है पश्चिमी घाट यानी सहयाद्री पर्वतमाला में वागोरा नदी पर घोड़ी की नाल के आकार की यह गुफाएं अपने आप में आश्चर्य पैदा करती हैं क्योंकि इतने प्राचीन समयमें हथौड़े छैनी और कुदाल जैसे साधारण उपकरणों का उपयोग करके चट्टान को कैसे काटा गया और कैसी ये गुफाएं निर्मित हुई होंगी यह आज भी यहां पर आने वाले हर सैलानी के मन में उठने वाला सवाल है जंगली पेड़ पौधों से घिरी अजंता की गुफाएं कठोरचट्टानों और हरियाली के बीच एक शांत और खूबसूरत जगह है इन्हें बौद्ध धार्मिक कलाके बेहतरीन उदाहरणों में से एक माना जाता है इन गुफाओं का नाम पास के गांव अजिंठ के नाम पर रखा गया है जो यहां से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बौद्ध धर्म की कला से सजी यह गुफाएं घने जंगलों जंगली जानवरों और भीलों के हमलों के भय के चलतेहजारों सालों तक अज्ञात बनी रही लेकिन साल 1819 में इन्हें फिर से पहचान मिली जब एक ब्रिटिश अधिकारी जॉन स्मिथ इस इलाके में शिकार के लिए निकला तब वह सहयाद्री की पहाड़ियों में जा पहुंचा वहां उसे एक नदी वागोरा भी दिखाई दी इसी के किनारे घूमते हुए शिकार की तलाश करते स्मिथ को नदी से ऊपर पहाड़ियों पर गुफा का मुहाना दिखाई देने लगा उसने सोचा शायद उस गुफा में शिकार हो इसी सोच के साथ गुफा में घुसा स्मिथ हैरानी से भर गया जब उसने रोशनी जलाकर गुफा के अंदर देखा और पाया कि अजंता की गुफाएं हैं कला और वास्तुकला का अद्भुत अनूठा नजारा देखकर वह दंग रह गया यह खबर तेजी से चारों ओर फैल गई और फिर से अजंता गुफाओं को अपनी खोई हुई पहचान मिलने लगी और आधुनिक भारत के लिए यह इतिहास की किसी सौगात से कम नहीं थी इन गुफाओं की जानकारी बौद्ध यात्री फाहियान और हिंस तांग के यात्रा वृतांत से भी मिलती है

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