अजंता और एलोरा की गुफाएँ - भारतीय वास्तुकला का चमत्कार
भारत का इतिहास यहां की संस्कृति की एक अनोखी झांकी पेश करता है भारत के धर्म सभ्यता और संस्कृति की झलक इसमें बया होती है आज कला और वास्तुकला के क्षेत्र में
बहुत प्रगति हो गई है लेकिन अगर आप पीछे मुड़कर अजंता और एलोरा की गुफाओं को देखेंगे तो हैरान हुए बिना नहीं रह सकेंगे क्योंकि अपने आप में बहुत ही अद्भुत प्राचीन भारतीय कला और वास्तु कला का उत्कृष्ट नमूना है यह गुफाएं भारत के दोसबसे प्रसिद्ध सबसे अनोखे पुरातात्विक स्थल हैं अजंता और एलोरा की गुफाएंजिन्हें देखकर आप भारत की कला धर्म और इतिहास को बहुत करीब से समझ सकते हैं लंबेसमय तक अतीत में गुमनामी का मंजर देखकर निकली यह गुफाएं अपने आप में रहस्य से भरीहैं यह गुफाएं कहां स्थित है किस तरह धर्म के रूप दर्शाती हैं कितने समय पुरानी हैऔर इनसे जुड़ी कथाएं और कहानियां क्या कह हैं आपको यह जरूर जानना चाहिए ताकि आप समझसके कि भारत देश की कला कितनी समृद्ध है इसकी प्राचीन कृतियां हमारे लिए धरोहर है जिन्हें संजोने और सरने की जरूरत है और इन पर गर्व करने की जरूरत भी है इसलिए आज कीजर्नी में हम जानेंगे अजंता और एलोरा की गुफाओं अजंता और एलोरा की गुफाएं यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट में शामिल है यहां की धार्मिक चित्रकारी और कला का प्रभाव भारत में कला के विकास पर गहरा प्रभाव डालता है यूं तो अजंता और एलोरा की गुफाओं को एक ही मान लिया जाता है लेकिन इनमें अंतर है यह दोनों ही गुफाएं चट्टानों को काटकर बनाए गए मंदिर और मठ हैं लेकिन फिर भी एक दूसरे से अंतर रखते हैं अजंता और एलोरा की गुफाओं मे लगभग 100 किलोमीटर की दूरी है अजंता की गुफाएं केवल एक धर्म पर आधारित हैं तो एलोरा की गुफाओं में कई धर्मों को स्थान दिया गया है चलिए पहले अजंता की गुफाओं के बारे में जानते हैं और फिर एलोरा की गुफाओं के बारे में भारत के महाराष्ट्र राज्य के छत्रपति संभाजीनगर जिले यानी _
औरंगाबाद से लगभग 100 किलोमीटर दूर स्थित है अजंता गुफाएं जो घने जंगलों से घिरी
हुई बौद्ध गुफा स्मारकों का समूह है समुद्र तल से ये 76 मीटर की ऊंचाई स्थित है पश्चिमी घाट यानी सहयाद्री पर्वतमाला में वागोरा नदी पर घोड़ी की नाल के आकार की यह गुफाएं अपने आप में आश्चर्य पैदा करती हैं क्योंकि इतने प्राचीन समयमें हथौड़े छैनी और कुदाल जैसे साधारण उपकरणों का उपयोग करके चट्टान को कैसे काटा गया और कैसी ये गुफाएं निर्मित हुई होंगी यह आज भी यहां पर आने वाले हर सैलानी के मन में उठने वाला सवाल है जंगली पेड़ पौधों से घिरी अजंता की गुफाएं कठोरचट्टानों और हरियाली के बीच एक शांत और खूबसूरत जगह है इन्हें बौद्ध धार्मिक कलाके बेहतरीन उदाहरणों में से एक माना जाता है इन गुफाओं का नाम पास के गांव अजिंठ के नाम पर रखा गया है जो यहां से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है बौद्ध धर्म की कला से सजी यह गुफाएं घने जंगलों जंगली जानवरों और भीलों के हमलों के भय के चलतेहजारों सालों तक अज्ञात बनी रही लेकिन साल 1819 में इन्हें फिर से पहचान मिली जब एक ब्रिटिश अधिकारी जॉन स्मिथ इस इलाके में शिकार के लिए निकला तब वह सहयाद्री की पहाड़ियों में जा पहुंचा वहां उसे एक नदी वागोरा भी दिखाई दी इसी के किनारे घूमते हुए शिकार की तलाश करते स्मिथ को नदी से ऊपर पहाड़ियों पर गुफा का मुहाना दिखाई देने लगा उसने सोचा शायद उस गुफा में शिकार हो इसी सोच के साथ गुफा में घुसा स्मिथ हैरानी से भर गया जब उसने रोशनी जलाकर गुफा के अंदर देखा और पाया कि अजंता की गुफाएं हैं कला और वास्तुकला का अद्भुत अनूठा नजारा देखकर वह दंग रह गया यह खबर तेजी से चारों ओर फैल गई और फिर से अजंता गुफाओं को अपनी खोई हुई पहचान मिलने लगी और आधुनिक भारत के लिए यह इतिहास की किसी सौगात से कम नहीं थी इन गुफाओं की जानकारी बौद्ध यात्री फाहियान और हिंस तांग के यात्रा वृतांत से भी मिलती है
साथ उनके पूर्व जन्मों से संबंधित महा कपी जातक छंद जातक हस्ती जातक हंस जातक वैस जातक महिष जातक शिवी जातक जैसे बहुत से जातकों का चित्रण पाया गया है आइए इनमें से कुछ जातक कथाओं को जानते हैं ताकि अजंता की गुफाओं में इन्हें देखते हुए हम इन्हें स्पष्ट रूप से समझ सके महाकवि जातक जातक कथाओं या बुद्ध के पूर्व जीवन की कहानियों में से एक है जब वह बंदरों के राजा के रूप में बौद्धि स्व थे इस कहानी के अनुसार बौद्धि स्व का जन्म एक बंदर के रूप में हुआ था जो 88 हज बंदरों का राजा था सारे बंदर गंगा के पास एक स्थान पर रहते थे और एक विशाल आम के पेड़ का फल खाते थे बनारस के राजा ब्रह्मदत्त ने आम पाने की इच्छा में जानवरों को मारने के लिए अपने सैनिकों के साथ पेड़ को घेर लिया लेकिन बौद्धि स्व ने अपने शरीर से नदी पर एक पुल बनाया और अपनी पूरी जनजाति को सुरक्षित रखते हुए वहां से भागने में सक्षम बनाया स्वयं के जीवन की परवाह किए बिना दूसरों का उद्धार करने का इरादा ही भगवान बुद्ध के जीवन का लक्ष्य रहा भले ही उन्होंने किसी भी रूप में जन्म लिया हो इसी तरह छंद जातक की कथा के अनुसार सदियों पहले हिमालय के घने जंगलों में विशाल छह दांतों वाले हाथी रहा करते थे इसलिए वह छंद कहलाते थे इनका राजा कंचन गुफा में अपनी दो पत्नियों महा सुब और चुल्लू सुब के साथ रहा करता था एक बार इस राजा ने एक विशाल वृक्ष की डाल को कसकर हिलाया तो उस पर लगे फूल रानी महा सुभ्रा पर गिरने लगे जिससे वह बहुत खुश हो गई वहीं वृक्ष की सूखी डाली दूसरी रानी चुल्ल सुबिधा के ऊपर जा गिरी अनजाने में हुई इस घटना को चुल्ल सुबिधा ने अपना अपमान माना और गजराज को छोड़कर दूर चली गई कुछ समय के बाद उसकी मृत्यु हो गई और वह नया जन्म लेकर मध्य राज्य की राजकुमारी बनी युवा होने पर वाराणसी के राजा से उसकी शादी हुई और वह पटरानी बन गई इस पुनर्जन्म के बाद भी वह छंद राजा द्वारा भूल वश हुए उस अपमान को भूली नहीं और उसका बदला लेने का सोचती रही एक दिन मौका पाकर उसके वाराणसी के राजा को छंद राज के दांत हासिल करने के लिए उकसाया जिसके बाद राजा ने एक टोली भेजी जिसका नेता था सोनु उतर सोनु उतर करीब सा साल का सफर तय करके गजराज के निवास पर पहुंचा उसने गजराज को पकड़ने के लिए और अपना शिकार बनाने के लिए उसके निवास से कुछ दूरी पर एक बड़ा ग गड्डा बनाया गड्ढे को छिपाने के लिए उसने उसे पत्तियों और छोटी लकड़ियों से ढक दिया और खुद झाड़ियों में छिप गया जैसे ही गजराज उस गड्ढे के करीब आया तो सोनत ने विष भुजा तीर निकालकर छंद राज पर निशाना लगा दिया तीर से घायल होने के बाद जब गजराज की नजर झाड़ियों में छिपे सोनु उत्तर पर पड़ी तो वह उसे मारने के लिए दौड़ा क्योंकि सोनु तर सन्यासियों के वस्त्र पहनकर आया था इसलिए गजराज ने सोनु उत्तर को जीवन दान दे दिया गजराज से जीवन दान पाकर सोन तर का मन बदल गया और उसने गजराज को सारा किस्सा बताया कि क्यों उसने गजराज पर निशाना साधा यह जानकर छंद राज ने स्वयं अपने दांत तोड़कर सोनु उतर को दे दिए ऐसा करने के बाद गजराज की मृत्यु हो गई गजराज के दांत पाकर गलानी से भरा सोनु तर वाराणसी लौट आया और गजराज के दांत रानी के समक्ष रख दिए साथ ही सोनू तर ने रानी को यह भी बताया कि किस तरह गजराज ने उसे जीवन दान देकर खुद अपने दांत दे दिए और उसकी मृत्यु हो गई पूरी बात जानने के बाद रानी गजराज की मौत बर्दाश्त न कर सकी और इस सदमे और आत्मग्लानि से उसकी भी तुरंत ही मौत हो गई बदले की भावना ने रानी के सोचने समझने की क्षमता को छीन लिया और उसका परिणाम बहुत ही दुखद हुआ यह जातक कथा यही संदेश देती है कि हमें बदले की भावना नहीं रखनी चाहिए उसका परिणाम बहुत ही बुरा होता है एक भित्ति पर चंपे जातक कथा का चित्रण भी है अपनी पूर्व जन्म की इच्छा के कारण बौद्धि स्व नाग लोक में राजा चंपे यानी नागराज के रूप में जन्मे यह चित्र इसी कथा को बयान करता है इसी तरह वसंतराव संन तारा की कहानी है जो अपने बच्चों सहित अपना सब कुछ दान कर देता है इस तरह बौद्ध जातक कथाएं जीवन से जुड़ी सीख देती हैं और अपना जीवन निश्छल प्रेम और उदा ता के साथ जीने की बात कहती हैं जिन्हें अजंता की दीवारों पर बहुत ही खूबसूरती और स्पष्टता के साथ बनाया गया है ताकि भगवान बुद्ध के यह संदेश सदियों तक प्रसारित होते रहे और मानवता का संदेश देते रहे इन अजंता गुफाओं से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है एलोरा गुफाएं एलोरा में 100 गुफाएं हैं जिनमें से 34 गुफाएं पर्यटकों के लिए खुली हैं एलोरा की खासियत यह है कि इसकी 34 गुफाओं में से 17 हिंदू धर्म पर आधारित है 12 गुफाएं बौद्ध धर्म से संबंधित हैं और पांच गुफाएं जैन धर्म पर आधारित हैं यानी चट्टानों को काटकर बनाई गई यह गुफाएं
तीन धर्मों के गुफा स्मारक एलोरा को एकधार्मिक सहिष्णु स्थल बनाते हैं इन तीनों धर्मों में से सबसे पहले हिंदू धर्म सेसंबंधित गुफा मंदिर तैयार हुए उसके बाद बौद्ध धर्म संबंधी और आखिर में हिंदू और जैन धर्म दोनों पर आधारित मूर्तियां और चित्रकारी तैयार की गई हिंदू बौद्ध और जैन इन तीनों ही समूहों की अपनी अलग वास्तुकला और शैली है जटिल नक्काशी मूर्तियां और स्थापत्य शैली एलोरा को खास पहचान दिलाती है यह गुफाएं अजंता की गुफाओं की तुलना में नई है इनका निर्माण छठी से 13वीं शताब्दी ईसवी तक में हुआ है लगभग 2 किलोमीटर क्षेत्र में फैली यह गुफाएं मंदिरों और मठों का स्थल है ज्वाला से निर्मित बेसाल्ट चट्टानों को काटकर बनाई गई एलोरा गुफाओं का निर्माण राष्ट्रकूट राजवंश कलचुरी राजवंश चालुक्य राजवंश और यादव राजवंश ने करवाया एलोरा में छोटी कोठरी नुमा गुफाएं भी हैं तो बहु मंजिला मंदिर भी हैं एलोरा की शुरुआती गुफाएं जो हिंदू गुफाएं थी उनमें भगवान शिव विष्णु और देवी दुर्गा जैसे कई हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां देखी जा सकती हैं यह गुफाएं 13 से 29 नंबर तक है यहां पर आपके लिए यह जानना भी जरूरी है कि इन गुफाओं की क्रम संख्या इनके निर्माण के समय के अनुसार नहीं दी गई है इनमें से प्रसिद्ध गुफाएं हैं गुफा नंबर 14 है 16 है और 17 है यह अलग-अलग शताब्दियों में बनकर तैयार हुई जैसे गुफा 14 है सातवीं शताब्दी में गुफा 16 है आठवीं शताब्दी में और गुफा 17 है नौवीं शताब्दी में बने गुफा मंदिर हैं इनकी मूर्तियों के अलावा इन गुफाओं की जटिल नक्काशी और सजावट देखते ही बनती है यहां पर बने भित्ति चित्र धार्मिक विषयों से संबंधित हैं लेकिन यहां पौराणिक विषयों के चित्रण भी देखे जा सकते हैं वहीं बौद्ध गुफाएं संख्या एक से 12 तक हैं जिन्हें आठवीं और नौवीं शताब्दी के दौरान बौद्ध भिक्षुओं ने बनाया था यह चट्टानों को काटकर बनाई गई मूर्तियों और चित्रों के लिए जानी जाती हैं जो बुद्ध और अन्य बौद्ध आकृतियों और घटनाओं के जीवन को दर्शाती हैं इन गुफाओं में बुद्ध बौद्धि स्व और अन्य बौद्ध देवताओं की मूर्तियां और चित्रण है इन गुफाओं में बुद्ध के जन्म ज्ञान प्राप्ति और मोक्ष प्राप्ति के दृश्यों को देखा जा सकता है इनमें बुद्ध के शिष्यों और अनुयायियों की मूर्तियां भी हैं इन गुफाओं में से कुछ सबसे प्रसिद्ध गुफाएं हैं गुफा एक जो कि एक स्तूप है गुफा दो एक स्तूप और मठ है और गुफा 12 है जो कि एक स्तूप और मठ है एलोरा में 23 से 34 नंबर की गुफाएं जैन गुफाएं हैं यह जैन तीर्थंकरों की मूर्तियों के लिए जानी जाती हैं जिन्हें जैन धर्म का आध्यात्मिक नेता माना जाता है इन गुफाओं में जैन धर्म के विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक विषयों के चित्रण भी हैं इन गुफाओं में से कुछ सबसे प्रसिद्ध गुफाएं गुफा 32 33 और 34 हैं जो जैन मंदिर हैं राष्ट्रकूट राजवंश के पतन के बाद 10वीं शताब्दी के दौरान एलोरा गुफाओं को छोड़ दिया गया था जिसके बाद यह इतिहास में कहीं खो गई और 19वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा फिर से इन्हें खोजा गया और उसके बाद भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण ने इसका गहन अध्ययन करने के साथ-साथ इसका जिन्नो धार भी किया और पर्यटन के लिए इन्हें तैयार भी किया एलोरा की कुछ खास गुफाओं के बारे में जाने तो यह हैं एलोरा गुफा नंबर 10 जो विश्वकर्मा गुफा के नाम से भी जानी जाती है चट्टान की बनावट के कारण इसे सुतार कीझोपड़ी या बढई की गुफा के नाम से भी जाना जाता है यह गुफा एलोरा का एक अकेला चैत्य हल है इसमें बुद्ध की एक विशाल आकृति खुदी हुई है गुफा 11 और 12 है दो ताल और तीन ताल के नाम से जानी जाती हैं क्योंकि गुफा 11 दो मंजिला है और गुफा 12 तीन मंजिला इनमें मठ से जुड़ी बौद्ध वास्तुकला को खूबसूरती से दिखाया गया है एलोरा की गुफा नंबर 14 भी अपना विशेष महत्व रखती है इसे रावण की खाई के नाम से जाना जाता है हालांकि इस नाम का कारण अभी तक स्पष्ट नहीं है इस गुफा की दीवार पर महिषासुर मर्दिनी चौसर खेलते हुए भगवान शिव और पार्वती नटराज की मुद्रा में भगवान शिव दिव्य नृत्य करते हुए देखे जा सकते हैं रावण का कैलाश पर्वत हिलाना और बाद में भगवान शिव से क्षमा मांगने का चित्रण भी यहां पर देखा जा सकता है मां दुर्गा गजलक्ष्मी वरहा अवतार भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की मूर्तियों सहित बहुत कुछ है यहां पर देखने को इस गुफा के नजदीक रावण की खाई एक प्राकृतिक गड्ढा है जिसके बारे में कहा जाता है कि रावण ने इस खाई को अपनी सेना के लिए एक अभ्यारण्य के रूप में बनाया था रावण की खाई के बाद बारी आती है गुफा नंबर 15 के बारे में जानने की जो दशावतार गुफा के नाम से भी जानी जाती है ये एक हिंदू मंदिर है जिसका यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि इस गुफा के अंदर भगवान विष्णु के 10 अवतारों की मूर्तियां हैं साथ ही अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां भी इसी गुफा में उकेरी गई हैं जैसे भगवान गणपति देवी पार्वती सूर्य शिव और पार्वती महिषासुर मर्दिनी और अर्धनारीश्वर इस गुफा में फूलों से लेकर सांपों तक की कलाकृतियां देखी जा सकती हैं और बनों की मूर्तियां भी ध्यान अपनी ओर खींचती हैं यह गुफाएं अपनी अद्भुत वास्तु कला के लिए मशहूर है एलोरा की गुफा नंबर 16 सबसे अद्भुत है इसलिए इसके बारे में हम इस सफर में थोड़ा आगे चलकर बात करेंगे कुछ विस्तार से इसलिए अभी जानते हैं एलोरा की किस भी गुफा के बारे में जो कि एक हिंदू मंदिर है जिसे रामेश्वर गुफा भी कहा जाता है यह भगवान शिव को समर्पित है और गुफा के सामने एक ऊंचे चबूतरे पर नंदी की मूर्ति भी स्थापित है इस गुफा में गंगा और यमुना के सुंदर चित्र भी बने हैं एलोरा की 29 वं गुफा डूमर लेना कहलाती है जो स्थानीय रूप से सीता की नहानी के रूप में मशहूर है यह स्थान एलांगा नदी के झड़ने से बनाया गया है यह गुफा महाराष्ट्र की एलिफेंटा गुफाओं से मिलती जुलती है इसमें कई अद्भुत मूर्तियां भी हैं जैसे रावणा ग्रह मूर्ति जिसमें भगवान शिव रावण को वरदान दे रहे हैं कल्याण मूर्ति जिसमें भगवान शिव और देवी पार्वती का अलौकिक विवाह हो रहा है और नटराज रूप में भगवान शिव के अलौकिक नृत्य जैसी कई मूर्तियां देखी जा सकती है एलोरा की गुफा 32 इंद्र सभा के नाम से भी जानी जाती है यह असल में भगवान महावीर और अन्य जैन देवताओं को समर्पित मंदिर की एक श्रृंखला है इस गुफा की ऊपरी मंजिल सबसे ज्यादा बड़ी और सबसे नक्काशी दार हिस्सा है इसमें सुंदर खंबे बड़े मूर्ति कला पैनल और छत पर पेंटिंग भी बनी है एलोरा की सभी गुफाओं में से जैन गुफाओं में छत और दीवार पर सबसे ज्यादा पेंटिंग है इसी तरह एलोरा की गुफा 33 और 34 भी जैन धर्म को समर्पित है गुफा 33 जगन नथा सभा कहलाती है यह इंद्र सभा के ठीक बगल में है और इंद्र सभा के बाद जैन गुफाओं के समूह में दूसरी सबसे बड़ी गुफा है इसमें बाईं और पार्श्वनाथ दाईं ओर गौ माता और मंदिर में महावीर की प्रतिमा है जैन गुफाओं की आखिरी गुफा है गुफा नंबर 34 यह एक मठ है जिसमें कई कक्ष हैं इन कक्षों में जैन धर्म के देवी देवताओं की मूर्तियां हैं जैन तीर्थंकरों के चित्र है इसमें एक छोटा मंदिर भी है जिसमें इस मंदिर के दरवाजे पर उदारता की देवी सिद्धिका और समृद्धि के भगवान मातंग की सुंदर मूर्तियां बनाई गई हैं यह गुफाएं जैन धर्म की समृद्ध विरासत को दर्शाती हैं और अब जानते हैं एलोरा की उस सबसे खास और सबसे अनोखी गुफा गुफा नंबर 16 के बारे में जिसे कैलाश मंदिर के नाम से भी जाना जाता है भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में दुनिया की सबसे बड़ी अखंड संरचना है यह मंदिर ना केवल भारतीय वास्तु कला का ऐतिहासिक नमूना है बल्कि हैरान कर देने वाली इमारत भी है क्योंकि य विशाल म मंदर केवल एक ही पत्थर से बनी विश्व की सबसे बड़ी संरचना है और इसका कारण यह है कि इस मंदिर को सिर्फ एक चट्टान को काट करके ही बनाया गया है इस चट्टान का वजन लगभग 40000 टन बताया जाता है इस मंदिर की नक्काशी मूर्तियों और हिंदू पौराणिक कथाओं पर आधारित दृश्यों को देखने पूरी दुनिया से लोग यहां पर आते हैं लगभग 300 फीट लंबा 175 फीट चौड़ा और 100 फीट ऊंचा यह कैलाश मंदिर एक बहु मंजिला मंदिर परिसर है जिसे भगवान शिव के घर कहे जाने वाले कैलाश पर्वत की तरह बनाने की कोशिश की गई है इस भव्य मंदिर को बनने में कितना समय लगा इसे लेकर कई मत हैं कई लोगों का मानना है कि इस ऐतिहासिक मंदिर को बनने में 100 साल से भी ज्यादा का समय लगा था और करीब 7000 मजदूरों ने दिन रात एक करके इस मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया था एक मत यह भी कहता है कि यह विशाल मंदिर सिर्फ कुछ हफ्तों में ही बनकर तैयार हो गया था और इतना जल्दी बनने का कारण इस मंदिर के निर्माण में किन्ही दिव्य शक्तियों या एलियंस का हाथ होना था किसी का कहना है कि इस मंदिर के नीचे वह दिव्य अस्त्र छुपे हैं जिनसे मंदिर का निर्माण हुआ मंदिर से जुड़ी एक अनोखी बात यह भी है कि भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में ना तो कोई पुजारी है और ना ही यहां पर किसी प्रकार की पूजा पाठ की कोई जानकारी मिलती है इतने सारे हैरान कर देने वाले किस्से और कहानियों के अलावा इस मंदिर की यह बात इसे और भी ज्यादा अनोखा बना देती है किस मंदिर को बनाते समय चट्टान को नीचे से नहीं काटा गया और ना ही सामने से तराशा गया बल्कि चट्टान को ऊपर से नीचे की ओर काटकर बनाया गया अब यह सुनकर ही आप चौक गए होंगे क्योंकि ऐसा करना कैसे संभव हुआ होगा और ऐसा करने के पीछे क्या कारण रहा होगा तो इसका सही जवाब तो फिलहाल किसी के भी पास नहीं है लेकिन एक कहानी इसके निर्माण से जुड़ी हुई है जिसके अनुसार अलाज पुर नाम का एक राज्य हुआ करता था जिसके राजा का नाम था एलू एक बार लू भयंकर बीमार पड़े उनकी फिक्र में उनकी रानी ने जंगल में जाकर भगवान घृष्णेश्वर की पूजा की और उनसे प्रार्थना की कि अगर राजा सही हो गए तो वह भगवान शिव का एक मंदिर बनवाए गी और तब तक खाना नहीं खाएगी जब तक कि वह मंदिर का शिखर ना देख ले रानी की इस प्रार्थना के कुछ समय के बाद ही राजा की बीमारी ठीक हो गई और तब रानी ने राजा से कहकर एलोरा में इस शिव मंदिर का निर्माण शुरू करवाया अब चुनौती आई कि विशाल शिव मंदिर के निर्माण में तो बहुत समय लग जाएगा और उसका शिखर बनने तक रानी भूख कैसे रह पाएगी ऐसे में राजा ने अपने कारीगरों से कहकर मंदिर का निर्माण ऊपर से नीचे की ओर करवाया ताकि सबसे पहले मंदिर का शिखर बन सके और रानी अपना व्रत पूरा कर सके कुछ लोगों का मानना है कि रानी ने भगवान शिव से सहायता मांगी और उन्हें भूमि अस्त्र प्राप्त हुआ यह अस्त्र पत्थर को भी भाप बना सकता था तो ऐसे में इस अस्त्र से मंदिर का निर्माण बहुत ही कम समय में हो गया और रानी का व्रत पूर्ण हो सका बाद में इस अस्त्र को भूमि के नीचे छुपा दिया गया पुरातत्व विदों के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 800 से 1000 ईसवी के बीच हुआ और यह निर्माण राजा कृष्ण प्रथम ने शुरू करवाया इस मंदिर को बनने में 18 साल लगे और यह निर्माण कार्य अलग-अलग राजाओं के समय में हुआ शुरुआत में मंदिर को कृष्णेश्वर कहा गया और बाद में कैलाश मंदिर इस मंदिर को सफेद रंग से रंगा भी गया ताकि यह कैलाश पर्वत जैसा दिखाई दे सके इस मंदिर में प्रवेश द्वार मंडप और मूर्तियां हैं दो मंजिल में बनाए गए इस मंदिर को अंदर और बाहर दोनों ओर मूर्तियों से सजाया गया है मंदिर में सामने की ओर खुले मंडप में नंदी है और उसके दोनों ओर विशाल काय हाथी और स्तंभ बने हुए हैं मंदिर की दीवार पर पुराणों से जुड़ी तस्वीरें बनी है जैसे रावण का कैलाश पर्वत को हिलाना वण द्वारा देवी सीता का अपहरण करना भगवान राम का हनुमान से मिलना ऐसे बहुत से पौराणिक दृश्य इन दीवारों पर उके गए हैं और इनमें रामायण के अलावा महाभारत के दृश्य भी शामिल है मंदिर के गर्भ ग्रह में भगवान शिव का लिंगम रूप स्थापित है औरंगजेब जो एक आक्रांता था उसने इस मंदिर को नुकसान पहुंचाने की बहुत कोशिश की लेकिन वह इसे ज्यादा क्षति नहीं पहुंचा सका और आज भी यह कैलाश मंदिर ना केवल धर्म की बल्कि इतिहास की गवाही देने के लिए अटल खड़ा है इतना तय है कि कैलाश मंदिर नक्काशी और वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है जो यह साबित करता है कि भारत में हजारों साल पहले से एक उन्नत सभ्यता का निवास रहा है एलोरा कीय गुफाएं रहस्य रोमांच और समृद्ध विरासत से भरपूर हैं जो एक साथ तीन धर्मों के आपसी सामंजस्य सहिष्णुता और सौहार्द का संदेश देती हैंअगर आप अजंता एलोरा की गुफाओं को देखने आए तो इनके साथ साथ इनके आसपास मौजूद कुछ और पर्यटन स्थलों की सैर भी कर सकते हैं जैसे घृष्णेश्वर मंदिर भद्र मारुती मंदिर और बीवी का मकबरा यहां पर आप एलोरा फेस्टिवल का आनंद भी ले सकते हैं जो कि एक क्लासिकल म्यूजिक और डांस फेस्टिवल है अजंता और एलोरा की इन ऐतिहासिक धरोहरों को करीब से देखने के लिए आपको एक बार यहां पर जरूर आना चाहिए तो इस बार अजंता एलोरा आइए और अपने इतिहास को किताबों से बाहर इन गुफाओं में करीब से से देखिए |