Curse of World's Most Famous Diamond :-
1854 था तब के गवर्नर जनरल लॉर्ड दलहोजी
ने एक 15 साल के बच्चे को पंजाब से
इंग्लैंड भेजा लॉर्ड दलहोजी का मानना था
कि इस बच्चे की मां एक थ्रेट है और उनका
कैरेक्टर अच्छा नहीं है इसलिए इसे मां से
जुदा करना बहुत जरूरी है इंग्लैंड में
जाकर यह बच्चा क्रिश्चियनिटी में कन्वर्ट
हो जाता है और क्वीन विक्टोरिया के बेटे
एडवर्ड द सेथ के साथ इसकी अच्छी दोस्ती
होती है इस बच्चे की रिस्पांसिबिलिटी
ब्रिटिश क्राउन को दे दी जाती है और साथ
में इसे एक एनुअल स्टाइपेंड दिया जाता है
50000 पाउंड्स का आज के दिन अगर आप इसे
इंफ्लेशन से एडजस्ट करोगे तो इसकी कीमत
होगी 65 करोड़ पर ईयर असल में बात क्या है
दोस्तों ये लड़का कोई ऑर्डिनरी इंसान नहीं
था यह था प्रिंस दलीप सिंह जिन्हें आज हम
महाराजा दलीप सिंह के नाम से भी जानते हैं
इंडिया में सिख एंपायर के आखिरी रूलर
इंटरेस्टिंग चीज क्या है इन्हें इंग्लैंड
भेजने से 4 साल पहले साल 1849 में जब
ब्रिटिश ने सिक्स को हराया था जंग में
लॉर्ड दलहोजी ने 11 साल के प्रिंस दलीप को
ऑर्डर किया था कि वह एक हीरा सरेंडर कर दे
क्वीन विक्टोरिया को यह हीरा था कोहीनूर
का हीरा जो उस साल 6700 किमी दूर जहाज में
बैठकर लंदन तक गया कोहिनूर के इस हीरे के
बारे में कहा जाता है जो इस हीरे का मालिक
बनेगा वो पूरी दुनिया का मालिक होगा लेकिन
सारी दुनिया के दुर्भाग्य भी उसी के हाथ
लगेंगे एक तरीके का सुपर स्टेशन है जिसे द
कर्स ऑफ कोहिनूर भी कहा जाता है क्योंकि
बात क्या है दोस्तों इतिहास में जिस-जिस
आदमी के हाथ य कोहीनूर लगा है उनकी
जिंदगियां खून खराबे वायलेंस और धोखे से
भरी हुई रही यह डायमंड दुनिया के इतिहास
में सबसे इनफेमस डायमंड रहा है आज के इस
वीडियो में आइए जानते हैं दोस्तों यह
दिलचस्प कहानी कोहिनूर की कोहिनूर हीरा इस
समय टावर ऑफ लंदन के जवल हाउस में कई
सालों से रखा हुआ है लेकिन इसकी ब्रिटेन
से वापसी की मांग समय समय पर उड़ती रही है
कोहीनूर हीरा जो अंग्रेजों की गुलामी के
दिनों में भारत से ब्रिटेन पहुंच गया और
महारा नी के राज मुकुट की शान बन गई आई सो
द कोनो फर्स्ट आई विटनेस डिस्क्रिप्शन ऑफ
इट आई सो द कोनो इज अटैच टू द हेड ऑफ
पीकॉक ऑन टॉप ऑफ द पीकॉक थ्रोन काफी सारी
थ्योरी है इसको लेकर दोस्तों कि कोहिनूर
का ओरिजन कहां हुआ था पहली बार कहां यह
पाया गया था ईस्ट इंडिया कंपनी में काम
करने वाले एक सिविल सर्वेंट थे थियो मैट
कफे उन्होंने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि
ट्रेडिशनल इस डायमंड को एक्सट्रैक्ट किया
गया था कृष्णा के लाइफ टाइम के दौरान
लेकिन हिस्टोरियंस के अकॉर्डिंग सबसे
ज्यादा एक्सेप्टेड व्यू यही है कि यह हीरा
एक्चुअली में कोलूर माइंस में मिला था
गोलकोंडा के रीजन में इसे कोलार माइनिंग
एरिया से कंफ्यूज मत कीजिए जिसे केजीएफ
फिल्म में पॉपुलर इज किया गया था गोलकोंडा
के डायमंड्स एक्चुअली में कृष्णा नदी के
बैंक्स पर पाए जाते हैं कोस्टल आंध्र
प्रदेश 18th सेंचुरी में ये एरिया दुनिया
का इकलौता एरिया था जहां पर डायमंड्स पाए
जाते थे
अंट्या मंड माइंस को डिस्कवर किया गया अब
ये चीज क्लियर नहीं है कि इस कोहिनूर हीरे
को पहले किसने ढूंढा कैसे ढूंढा लेकिन
आमतौर पे जो जेम स्टोंस होते हैं यह सूखी
नदियों के बेडस पर पाए जाते हैं और
हिस्टोरिकल एगजैक्टली हम यह भी नहीं जानते
कि इसे एगजैक्टली कब डिस्कवर किया गया था
बेस्ट एस्टीमेट जो हिस्टोरियंस ने लगाया
है वो यह है कि ये ईयर 1100 और 1300 के
बीच में पाया गया था ऐसा माना जाता है कि
कोहिनूर का सबसे पहला मेंशन एक हिंदू
टेक्स्ट में किया गया था साल 1306 में
प्रॉब्लम बस यह है कि उस टेक्स्ट का नाम
किसी को नहीं पता और ना तो कोई यह जानता
है कि वो किसने लिखा था पहला रिटन रिकॉर्ड
जब कोहिनूर का में किया गया है वो है 1526
में पहले मुगल बादशाह जहीरुल बाबर जब
इंडिया आए थे साल 1526 में तो उन्होंने
अपने बाबर नामा में ये लिखा था कि एक ऐसा
हीरा है जिसकी कीमत आधे दुनिया का डेली
एक्सपेंस है ऐसा माना जाता है कि इन्होंने
एक कोहिनूर हीरा एज अ प्राइज जीता जब
इन्होंने एक जंग जीती तो दूसरी बार
कोहिनूर का मेंशन किया जाता है शाहजहां के
द्वारा साल 1628 में जब वो अपने फेमस
पीकॉक थ्रोन को कमिशन करते हैं इस थ्रोन
को बनने में 7 साल लगे थे और यह ताजमहल से
चार गुना ज्यादा कॉस्टली था इस थ्रोन को
बनाने में काफी प्रेशियस स्टोंस और जेम्स
का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन सबसे
ज्यादा कीमती जो जेम्स थे उनमें से एक था
कोहिनूर डायमंड और दूसरा था रेड कलर्ड टमर
रूबी एक इंटरेस्टिंग फैक्ट यहां पर मुगलों
के लिए कोहिनूर एक्चुअली में सबसे कीमती
पत्थर नहीं था मुगल टमोर रूबी को प्रेफर
करते थे वो उनके लिए सबसे ज्यादा
वैल्युएबल स्टोन था क्योंकि मुगलों को यह
ब्राइटली कलर्ड स्टोंस ज्यादा पसंद आते थे
जो रंग बिरंगे होते थे दूसरी तरफ हिंदू और
सिख राजा जो थे वो डायमंड्स को ज्यादा
प्रेफर करते थे एक पर्सनल प्रेफरेंस यहां
पर कह सकते हो लेकिन इसके बावजूद भी
कोहिनूर को पीकॉक थ्रोन में काफी बड़ी जगह
दी गई पीकॉक की आंख पर लगाया गया पर अभी
तक इस हीरे का नाम वैसे कोहिनूर नहीं पड़ा
था करीब 100 सालों बाद मुगलों के अंडर
दिल्ली एक्चुअली में वन ऑफ द वेल्थीएस्ट
सिटीज बन चुकी थी दुनिया की 2 मिलियन लोग
रहते थे यहां पर जो कि लंडन और पेरिस को
कंबाइन भी कर लो उससे भी ज्यादा पॉपुलेशन
थी लेकिन इस पॉइंट ऑफ टाइम तक मुगल एंपायर
कमजोर पड़ चुका था दिल्ली में मौजूद इतनी
दौलत को देखकर पर्शिया के नादिर शाह
आकर्षित होते हैं साल 1739 में नादिर शाह
दिल्ली पर इनवेजन करते हैं और मोहम्मद शाह
को डिफीट कर देते हैं मोहम्मद शाह 15th
मुगल एंपायर थे ग्रेट ग्रैंडसन थे औरंगजेब
नादिर शाह दिल्ली छोड़कर भागता है बहुत
सारा खजाना लेकर अपने साथ 700 हाथिया 4000
ऊंट और 12000 घोड़ों की जरूरत पड़ी थी
इतने खजाने को कैरी करने के लिए इस सारे
खजाने में कोहीनूर का हीरा भी होता है
यहां पर एक कॉमन बिलीफ है कि नादिर शाह को
टिप मिलती है मुगल एंपायर में काम करने
वाले एक ऑफिशियल से कि मोहम्मद शाह ने
कोहिनूर हीरे को अपने टर्बन में छुपा कर
रखा था एक पुराना वॉर कस्टम था टर्बन
एक्सचेंज करने का तो जब नादिर शाह प्रपोज
करते हैं कि यहां पर टर्बन को इधर से उधर
एक्सचेंज किया जाए तब वो कोहीनूर का हीरा
जमीन पर गिरता है और रोशनी में इतनी तेज
चमकता है कि नादिर शाह के मुंह से निकलते
हैं शब्द कोही नूर इन शब्दों का मतलब होता
है माउंटेन ऑफ लाइट रोशनी की एक पहाड़ी और
ऐसे इस डायमंड का नाम पड़ता है लेकिन
नादिर शाह के जो फाइनेंशियल ऑफिसर थे उस
वक्त उन्होंने एक किताब लिखी थी तारीखे
आलम आर आई ए नादरी इस किताब में जो लिखा
गया है उससे हमें एक रिटन रिकॉर्ड मिलता
है कि कोहिनूर एक्चुअली में पीकॉक थ्रोन
के सिर पर ही लगा हुआ था नादिर शाह ने इस
पीकॉक थ्रोन को ले लिया अपने पास और जो
टमर रूबी थी और कोहिनूर हीरा था उसे आम
बैंड पर पहन लिया हाथ में पहन ली तो वो जो
कहानी है कि इस हीरे का नाम कैसे पड़ा वो
शायद सच ना हो कि उनके टर्बन में था ये
लेकिन यह बात सच जरूर है कि नादिर शाह ने
ही इस हीरे का नाम कोहीनूर रखा था क्योंकि
इसी किताब में पहला रेफरेंस किया गया है
इस हीरे को कोहिनूर बुलाकर अगले 70 सालों
तक कोहिनूर आज के दिन के अफगानिस्तान का
हिस्सा रहता है और यहां पर आता है द कर्स
ऑफ कोहिनूर जिसकी बात मैंने वीडियो के
शुरू में करी थी जो भी इस हीरे का मालिक
बनेगा वो दुनिया का भी मालिक बनेगा लेकिन
सारे मिसफॉर्च्यून्स भी उसी के साथ होंगे
इस कहावत को एक्चुअली में उस हिंदू
टेक्स्ट से लिया गया है जो साल 1306 में
लिखा गया था जिसकी बात मैंने पहले करी थी
कि यहां पर माना जाता है कि कोहिनूर हीरे
का सबसे पहला मेंशन किया गया था ये एक
सुपरस्टिशन है लेकिन आगे आप कहानी में
देखोगे कि काफी हद तक सच भी है नादिर शाह
के ऊपर यह दुर्भाग्य पड़ता है साल 1747
में जब नादिर शाह के एक अपने ही गार्ड
उन्हें मार डालते हैं और उनका एंपायर
कोलप्पन हैं ये नादिर शाह की आर्मी का ही
एक हिस्सा थे ये नए अफगान एंपायर के
फाउंडर बन जाते हैं और साथ ही साथ कोहिनूर
हीरे के नए मालिक भी विलियम डैल रिंपल और
अनीता आनंद की किताब बताती है हमें कि
नादिर शाह के जो ग्रैंड सन थे शाहरुख शाह
उनके सर पर मोल्टन लेड डाला गया था ठीक
उसी तरीके से जैसे गेम ऑफ थ्रोंस में भी
किया गया था बस यह पता करने के लिए कि
कोहिनूर एक्चुअली में कहां पर था अब इसे
कोहिनूर का काला जादू कहो या कुछ और लेकिन
दुरानी एंपायर में भी काफी इन फाइटिंग
देखने को मिलती है अहमद के बेटे तीमू तो
ढंग से चला लेते हैं एंपायर को लेकिन उसके
बाद जो अहमद के पोते थे वह एक दूसरे के
साथ लड़ते हैं गद्दी के लिए तीमू का बेटा
और जो तीसरा रूलर था इस एंपायर का जामन
शाह दुरानी उसे गर्म नीडल से अंधा किया
जाता है उसका भाई जो पांचवा रूलर था शुजा
सा दुर्रानी उसकी वाइफ वाफा बेगम ने कहा
था अगर एक ताकतवर आदमी चार पत्थर को चार
दिशाओं में फेंके नॉर्थ साउथ ईस्ट और
वेस्ट में और पांचवें पत्थर को ऊपर हवा
में फेंके इन पांचों पत्थरों के बीच में
जो जगह हैं उस सारी जगह को आप सोने से भी
भर दोगे तो भी उस सोने की कीमत कोहिनूर की
कीमत जितनी नहीं होगी शुजा सा दुरानी
कोहिनूर को अपनी ब्रेसलेट में पहन के रखता
था साल 1809 में इसे डिथ्रोन कर दिया गया
लेकिन ये इस कोहिनूर हीरे को लेकर भाग गया
लाहौर और वहां पर यह रिफ्यूज लेता है
महाराजा रणजीत सिंह के अंदर रणजीत सिंह जी
फाउंडर थे सिख एंपायर के और दुर्रानी को
बचाने के रिटर्न में उन्होंने कोहिनूर
हीरा डिमांड किया और कुछ इस तरीके से
कोहिनूर हीरा चला गया सिख एंपायर के पास
साल 1813 में रणजीत सिंह के लिए भी
कोहिनूर की सिंबॉलिक इंपॉर्टेंस बहुत थी
जो जो जमीन दुर्रानी डायनेस्टी ने कब्ज आई
थी वो इन्होंने वापस जीत ली इन्हें द लायन
ऑफ लाहौर या फिर शेरए पंजाब नाम से भी
जाना जाता था और यह कोहिनूर को अपनी
बायसेप पर लेकर घूमते थे बायसेप के अराउंड
बांध कर कुछ सालों बाद ईस्ट इंडिया कंपनी
की पकड़ मजबूत होती जा रही थी इंडिया पर
जब ब्रिटिश को पता चला रंजीत सिंह जी के
देहांत के बारे में साल 1839 में उन्हें
यह भी पता चला कि उनका प्लान था कि ये इस
हीरे को कुछ हिंदू प्रीस्ट्स को दे देंगे
उस वक्त के जो ब्रिटिश अखबार थे वो बहुत
गुस्सा हो गए इस चीज को देखकर एक अखबार ने
उस वक्त लिखा था द रिचेस्ट द मोस्ट
कॉस्टली जेम इन द नोन वर्ल्ड हैज बीन
कमिटेड टू द ट्रस्ट ऑफ अ प्रोफेन आइडलीस
एंड मर्सन प्रीस्टहुड ब्रिटिश हुकूमत ने
ईस्ट इंडिया कंपनी को कहा कि इस कोहिनूर
हीरे पर नजर रखें ट्रैक करते रहे कि यह
कहां से कहां जा रहा है और कब इसे अपने
हाथ लिया जा सकता है ब्रिटिश को करीब एक
दशक इंतजार करना पड़ा जब रणजीत सिंह का
देहांत हुआ था 1839 में उसके बाद पंजाबी
थ्रोन एक्चुअली में चार अलग-अलग
रूलरसोंग्स
टाइम में जब सेकंड एंग्लो सिख वॉर कंप्लीट
हुई तब ईस्ट इंडिया कंपनी ने पंजाब एंपायर
का रूल खत्म कर दिया और तब तक दलीप सिंह
करीब 10 साल के हो चुके थे ईआईसी ने उनसे
एक ट्रीटी ऑफ लाहौर साइन करवाई इस ट्रीटी
में इस डॉक्यूमेंट पर लिखा गया था कि
कोहिनूर हीरा ईस्ट इंडिया कंपनी को हैंड
ओवर कर दिया जाए पंजाब उस वक्त आखिरी बड़ी
स्टेट बची थी जिसे ब्रिटिश ने कनकर नहीं
किया था तो यह जंग जीतने के बाद ईस्ट
इंडिया कंपनी कोई भी मौका नहीं छोड़ना
चाहती थी कि यहां पर सिख एंपायर दोबारा
उभर कर आ सके इसी रीजन से इन्होंने जि न
को जेल में डाल दिया और जो इकलौता दूसरा
मेंबर था फैमिली का उसे जहाज में बिठा के
लंदन भेज दिया और क्रिश्चियनिटी में
कन्वर्ट करा दिया इसी चीज की बात मैंने
वीडियो के शुरू में करी थी दलीप सिंह जब
सिर्फ 15 साल के थे साल
18544 में जब दलीप सिंह की बकिंघम पैलेस
में एक पेंटिंग बन रही होती है तब क्वीन
विक्टोरिया उन्हें मौका देती है कोहिनूर
को दोबारा से देखने का व इसे हाथ में
पकड़ते हैं और कहा जाता है कि इनके मुंह
से जो शब्द निकले थे वो ये थे इट इज टू मी
मैम ग्रेटेस्ट प्लेजर टू हैव द
अपॉर्चुनिटी एज अ लॉयल सब्जेक्ट ऑफ माय
सेल्फ टेंडरिंग टू माय सोवन द कोहीनूर
दलीप सिंह अपनी जिंदगी के आखिरी कुछ सालों
में जाकर इंग्लैंड के खिलाफ रेबेल जरूर
करते हैं कोशिश करते हैं इंडिया जाने की
लेकिन ब्रिटिश उन्हें रोक देते हैं जर्मन
से मदद इकट्ठी करने की कोशिश करते हैं
लेकिन अनफॉर्चूनेटली अनसक्सेसफुल रहते हैं
कहा जाता है बहुत ही निराशाजनक तरीके से
उनका देहांत होता है 55 साल की उम्र पर
पेरिस में जब उनकी लिविंग कंडीशंस बहुत
खराब हो गई थी वो पॉवर्टी में थे दूसरी
तरफ कोहिनूर बन जाता है क्वीन विक्टोरिया
की एक स्पेशल पोजीशन इंटरेस्टिंग चीज यह
है कि वो जो कहावत थी कोहिनूर के बारे में
कि जो भी आदमी इसका मालिक बनेगा उस कहावत
में यह भी कहा गया था कि ओनली अ गॉड और अ
वुमन कैन वेयर इट विद इंप्युनिटी सिर्फ
कोई भगवान या कोई औरत ही कोहिनूर को पहन
सकते हैं बिना किसी खराब कंसीक्वेंस के
साल
था लोगों ने कहा कि ये क्या है इस इतने से
पत्थर के पीछे लोग पागल हुए पड़े हैं
लोगों को यकीन नहीं हुआ कि ये वही कोहीनूर
हीरा है जिसके पीछे लोगों ने एक दूसरे को
मार डाला था यहां उनकी आंखों के सामने यह
सिर्फ एक ग्लास का पीस जैसा लग रहा है ऐसा
लग रहा है सिर्फ कोई आम कांच का टुकड़ा हो
ये चीज द टाइम्स अखबार ने लिखी थी जून
18514 एल्बर्ट वो कोहिनूर की दोबारा से री
कटिंग और पॉलिशिंग करवाते हैं साल
दूर से लाइट और अच्छे तरीके से रिफ्रैक्ट
हो और और चमकने लगे ये ये चाह रहे थे कि
लोग इसे देखकर और ज्यादा आकर्षित हो इससे
लेकिन इस प्रोसेस की वजह से कोहीनूर नेने
अपना 40 पर वजन लूज कर दिया 186 कैरेट्स
का था ये पहले और दोबारा से पॉलिश करवाने
के बाद कटिंग करवाने के बाद ये सिर्फ
105.6 कैरेट्स का रह गया आज के दिन
कोहिनूर हीरे के जो डायमेंशन है वो है 3.6
सेमी बा 3.2 बा 1.3 सेमी तो मतलब एक
मुर्गी का अंडा जितना बड़ा होता है उतना
ही बड़ा कोहिनूर है अपनी कहानी में आगे
बढ़ते हुए जब ब्रिटिश के हाथ कोहिनूर लगा
तो इन्हें भी बड़ा डर था द कर्स ऑफ
कोहिनूर से तो आने वाले टाइम में जितनी भी
ब्रिटिश रॉयल फैमिलीज थी उन्होंने डिसाइड
किया कि यह कोहिनूर का मालिक हम किसी आदमी
को नहीं बनाएंगे हमारे जो भी राजा महाराजा
होंगे उनकी पत्नी को हम मालिक बनाएंगे
कोहिनूर का तो इसी तरह से आने वाले सालों
में जब जब ब्रिटिश थ्रोन को पास ऑन किया
जाता कोहिनूर हमेशा राजा महाराजा की पत्नी
के पास जाता इवेंचर का एक पार्ट बन गया
पहले क्वीन एलेक्जेंड्रा के क्राउन में
गया ये उसके बाद बाद क्वीन मैरी के क्राउन
में गया और फाइनली फिर साल 1937 में ये उस
क्राउन में गया जिसे आज के दिन जो क्वीन
है इंग्लैंड की उनकी मदर ने पहना था क्वीन
की मदर का फ्यूनरल हुआ साल 2002 में और तब
आखिरी बार पब्लिकली हमें ये क्राउन देखने
को मिला आज के दिन यह क्राउन और ये
कोहिनूर दोनों आपको मिलेंगे टावर ऑफ लंडन
के अंदर जो वाटरलू बैरक्स हैं उसके अंदर
एक जूल हाउस है वहां पर इन्हें रखा गया है
तो देखा जाए पिछले 800 सालों में ब्रिटिश
मोनार्की सबसे लंबे समय के लिए कोहिनूर की
मालिक रही है 173 इयर्स इनके पास रहा कोही
आज के दिन बहुत से इंडियंस कोहिनूर को
लेकर इमोशनल फील करते हैं शशि थरूर की ये
2015 वाली ऑक्सफोर्ड यूनियन स्पीच काफी
फेमस हुई इंडिया शेयर ऑफ द वर्ल्ड इकॉनमी
वन ब्रिटन अराइव्ड ऑन इट शोर्स वाज 23 बाय
द टाइम द ब्रिटिश लेफ्ट इट वाज डाउन टू
बिलो 4 इंडिया वाज ऑलरेडी ब्रिटन बिगेस्ट
कैश काउ द वर्ल्डस बिगेस्ट परचेस ऑफ
ब्रिटिश गुड्स एंड एक्सपोर्ट्स
प्रधानमंत्री मोदी ने भी काफी प्रेस किया
था इनकी आर्गुमेंट को इन्होंने बताया कि
इंडिया ने कितनी इकन प्रोस्पेरिटी और
पोटेंशियल लूज करी ब्रिटिश कॉलोनियलिज्म
के हाथों और कोहिनूर इसी ब्रिटिश
कॉलोनियलिज्म का एक सिंबल है सवाल ये उठता
है कि क्या कोहिनूर हीरे को ब्रिटिश ने
इंडिया से चुराया है या फिर यह एक तोहफा
था जो डील कंप्लीट करने के लिए वैसे भी
देना ही था शशि थरूर की 2015 वाली स्पीच
के एक साल बाद 2016 में सुप्रीम कोर्ट में
एक पेटीशन फाइल करी गई थी एक एनजीओ के
द्वारा उस पेटीशन ने कहा कि सरकार को इस
कोहिनूर हीरे को वापस लाना चाहिए डिमांड
करनी चाहिए इंडियन गवर्नमेंट को ब्रिटिश
गवर्नमेंट से कि ये हीरा वापस वास करें
लेकिन रणजीत कुमार जो सरकार को रिप्रेजेंट
कर रहे थे कोर्ट में उन्होंने कहा कि ये
हीरा एक्चुअली में लाहौर ट्रीटी का एक
हिस्सा था इसे ना तो चुराया गया है ना ही
जबरदस्ती लिया गया है और वापस लेने की इसे
कोशिश करना बेकार है बाद में
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने सरकार
की तरफ से कहा कि हम पूरी कोशिश करेंगे
कोहिनूर को वापस लाने की फ्रेंडली तरीकों
से ये कहा गया कि मिस्टर कुमार ने जो कहा
था वो एक्चुअली में सरकार के व्यूज को
रिप्रेजेंट नहीं करता लेकिन लीगली देखा
जाए तो कोई ग्राउंड्स यहां पर मौजूद नहीं
है कोहिनूर को वापस लाने के इंडिया इकलौता
लीगल रूट यहां पर जो मौजूद है वो है 1970
का यूनेस्को कन्वेंशन कन्वेंशन ऑन द मींस
ऑफ प्रोहिबिटिंग एंड प्रिवेंट द इलिसिट
इंपोर्ट एक्सपोर्ट एंड ट्रांसफर ऑफ ओनरशिप
ऑफ कल्चरल प्रॉपर्टी जो कल्चरल हेरिटेज एक
देश का किसी दूसरे देश में गया है इलीगली
गलत तरीकों से लेकिन इस कन्वेंशन के साथ
दो प्रॉब्लम्स हैं पहली प्रॉब्लम तो यह है
कि इसे रेट्रोस्पेक्टिवली अप्लाई नहीं
किया जा सकता साल 1970 के पहले जो हुआ है
उसे वापस देना जरूरी नहीं है दूसरी चीज है
कि कल्चरल हेरिटेज क्या है इसे आर्टिकल वन
में डिफाइन किया गया है कन्वेंशन के एज द
प्रॉपर्टी व्हिच ऑन रिलीजस और सेकुलर
ग्राउंड्स इ स्पेसिफिकली डेजिग्नेट बाय ईच
स्टेट एज बीन ऑफ इंपोर्टेंस फॉर
आर्कियोलॉजी प्रीहिस्ट्री हिस्ट्री
लिटरेचर आर्ट और साइंस दूसरी प्रॉब्लम इस
कल्चरल हेरिटेज को अगर वापस किया भी जाए
तो किस देश को किया जाए सिचुएशन काफी
कॉम्प्लिकेटेड हो जाती है क्योंकि जो भी
बॉर्डर्स आज के दिन ड्रॉ हुए हैं कंट्रीज
के ये काफी रिसेंट है इससे पहले जो किंगडम
एजिस्ट करते थे राजा महाराजाओं के टाइम
में वो बॉर्डर्स हमेशा रिड्रॉ होते रहते
थे आज की डेट में जो सोवन टेरिटरीज हैं
इंडिया अफगानिस्तान या पाकिस्तान की वो
अपने इंडिपेंडेंस के बाद ही एजिस्ट करी
हैं इससे पहले किंगडम हुआ करते थे तो
टेक्निकली देखा जाए तो कोहीनूर हीरे को
इंडिया या पाकिस्तान या अफगानिस्तान की
सोवन टेरिटरी से नहीं लिया गया क्योंकि वो
टेरिटरीज तो एक स्पेसिफिक डेट के बाद ही
बनी है उससे पहले उन्हें किंगडम से लिया
गया है तो सवाल ये भी उठता है यहां पर कि
कोहिनूर को अगर वापस लाया जाए तो किधर
लाया जाए अफगानिस्तान में तालिबान के
स्पोक्स पर्सन ने साल 2000 में कहा था कि
वो कोहिनूर को वापस जाते हैं अपने देश में
साल 2016 में पाकिस्तान में लाहौर हाई
कोर्ट में भी पेटीशन फाइल करी गई थी कि
ब्रिटिश ने इस हीरे को चुराया है आज के
दिन के पाकिस्तान से क्योंकि सिख एंपायर
की जो कैपिटल थी वो लाहौर में थी
एंथ्रोपोलॉजी रिचर्ड करिन का कहना है कि
लॉजिकली देखा जाए तो यह कोहिनूर हीरा कई
देशों को वापस दिया जा सकता है
अफगानिस्तान पाकिस्तान इंडिया और इवन ईरान
भी राइट फुली क्लेम कर सकता है इस हीरे की
ओनरशिप क्योंकि उस जमाने में एक दूसरे से
लूटना बड़ी आम चीज हुआ करती थी लेकिन उस
जमाने में इनमें से कोई भी देश एजिस्ट
नहीं करता था हालांकि ज्योग्राफिकली इनके
रीजंस एजिस्ट करते थे इसे बाकी चीजों से
अलग रखना चाहिए जो कल्चरल हेरिटेज मान लो
नाजी के टाइम में चुराया गया जहां पर बड़ा
क्लियर है कि किस देश से चुराया है जब वो
देश ऑलरेडी एजिस्ट करते थे इमोशनली भी
रिचर्ड करिन का कहना है कि हमें कोहिनूर
की कहानी को अब बस हमेशा के लिए छोड़ देना
चाहिए जो भी इसका काला इतिहास रहा है पीछे
वापस से उभर कर ना आए वो उसे अभी अपनी
फाइनल रेस्टिंग प्लेस पर सो जाने दो यहां
पर आपकी क्या राय है दोस्तों नीचे कमेंट्स
में लिखकर बताइए आपको क्या लगता लगता है
कि क्या कोहिनूर को वापस लाने की कोशिश
करनी चाहिए या वहीं पर छोड़ देना चाहिए